अम्बेडकर बनाम गाँधी: व्यावहारिकता बनाम आदर्शवाद
भारत-पाकिस्तान विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है| इसी कड़ी के अलग-२ पहलु समझने के लिए हाल-फिलहाल एक अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी किताब पढ़ी-“The Partition of India”
Map of British India with areas showing hindu-muslim population concentration
एक ऐसे समय में जब हिन्दू और मुस्लिम संस्थायें धार्मिक उन्माद में खोये थे और कांग्रेस हमेशा की तरह कोई भी फैसला लेने में असमर्थ थी- ऐसे समय में अम्बेडकर एकमात्र व्यावहारिकता की किरण थे| मुस्लिम लीग के अलावा उस समय के बुद्धिजीवियों में अम्बेडकर उन चुनिन्दा इंसानों में से थे जिन्होंने विभाजन का व्यावहारिकता की दृष्टि से समर्थन किया था| उपर्लिखित किताब में अम्बेडकर ने विभाजन का विरोध करने वालों और हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द का सपना देखने वालों को तर्क देकर यथार्थ दिखाने का प्रयत्न किया है|
भारत विभाजन का विरोध करने वालों में कांग्रेस और गाँधी सबसे मुखर थे| बंटवारे के मुद्दे पर गाँधी ने व्यावारिक रूप से सोचने के बजाये स्वयं एवं देश को आदर्शवाद के भ्रम में अंत तक उलझाए रखा| विभाजन के विरोध में गाँधी की पहली दलील यह थी की वह इस पाप में भागीदार नहीं हो सकते| किसी स्थिति का विरोध करने के लिए ये तर्क सिर्फ हिंदुस्तान में ही चल सकता था(चल सकता है!)| गाँधी ने कांग्रेस की कमान सँभालते ही सबसे पहले हिन्दू-मुस्लिम एकता को प्राथमिकता दी थी, परन्तु इस पहल के बावजूद देश में लगातार साम्प्रदायिकता की आग बढ़ती रही| अनेको कोशिशों के बावजूद वह इस खाई को पाटने में नाकाम रहे| इसलिए जब ऊपर वाला तर्क भी इस आग को शांत करने में नाकाम रहा तब उन्होंने मुस्लिम लीग की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिंह लगा दिया| इस प्रकार उन्होंने एक दूसरी कल्पना में आश्रय लिया जहाँ उन्होंने मुस्लिम लीग और जिन्ना को मुस्लिमों का प्रतिनिधि मानने से ही इनकार कर दिया| इस प्रकार गाँधी और कांग्रेस स्वयं को अन्धकार में रख कर आखिरी समय तक अल्पसंख्यकों के सवाल से आँखें चुराते रहे, वहीं अम्बेडकर अपने विचारों के कारण दोनों समुदायों के निशाने पर आते रहे|
इस किताब में अम्बेडकर ने एक-२ कर विभाजन की परिस्थिति में दोनों समुदायों के फायदे का आंकलन किया है| १९२० से बाद के घटनाक्रम और हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनेको कोशिशों की विफलता को देखकर ही अम्बेडकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे की आजाद हिंदुस्तान में सांप्रदायिक सौहार्द की कल्पना करना एक मृगतृष्णा है| इसलिए भविष्य की परेशानियों और संभवतः गृहयुद्ध की संभानाओं को ध्यान में रखते हुए ही अम्बेडकर ने विभाजन का पक्ष लिया था| इसके अलावा अम्बेडकर ने दूसरे लोगों द्वारा सुझाये गए विभाजन के अन्य विकल्पों पर भी विस्तृत चर्चा की है| साथ ही साथ कुछ अन्य देशों जैसे तुर्की, चेकोस्लोवाकिया के उदाहरण लेकर भी इस समस्या पर प्रकाश डालने की कोशिश की है| कुल मिलाकर इस मामले में मैं अम्बेडकर के ज्यादातर तर्कों से सहमत हूँ क्योंकि धार्मिक पहचान की इस जटिल समस्या में विभाजन ही एकमात्र और सबसे कम रक्तरंजित उपाय था| ये अलग बात है की शुरू की सुस्ती के कारण अंत में विभाजन की जो हड़बड़ी मची उससे इतिहास रक्तरंजित हो गया| अगर कांग्रेस विभाजन के यथार्थ को समय रहते समझ लेती तो संभवतः अंग्रेजी शासन बंटवारे के दौरान क़ानूनी व्यवस्था संभाल पाता और देश को अराजकता का भयावह रूप न देखना पड़ता|
तर्क देने के अलावा अम्बेडकर ने विभाजन की योजना पर भी विचार प्रस्तुत किये थे| विभाजन की परिस्थिति में सीमारेखा निर्धारण से लेकर जनमत संग्रह कराने तक के सुझाव अम्बेडकर द्वारा दिए गए थे| इस लेख में दिए गए मानचित्र भी अम्बेडकर द्वारा ही बनाये गए हैं जो की वर्तमान की पंजाब और बंगाल की सीमारेखाओं से काफी मिलते जुलते हैं|
Population distribution of Punjab before independence
Population distribution of Bengal before independence
अम्बेडकर की व्यवहारिक सोच के कारण ही देश को एक सबल संविधान मिल पाया है| मेरा मानना है इस महान नेता और चिन्तक को सिर्फ दलित उद्धारक के रूप में देखना, उसके अन्य योगदानों को भुलाने सरीखा है| इसलिए इतिहास की किताबों में व्यावहारिक अम्बेडकर के योगदानों को भी अन्य आदर्शवादियों की तरह यथोचित स्थान देना अति-आवश्यक है, अन्यथा आज़ादी का इतिहास अधूरा रह जायेगा|
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