जनसांख्यिकीय जकड़ में अल-हिन्द!
ऊपर दर्शाया गया चित्रण ही वर्त्तमान स्थिति का आख्यान करने के लिए पर्याप्त है। इस सन्दर्भ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का वक्तव्य तथा हज़ारिका कमीशन की असम पर रिपोर्ट काफ़ी महत्त्व रखते हैं। सच्चाई यह है कि भारत में जनसांख्यिकीय स्तर पर लड़ाई छेड़ी जा चुकी है(demographic battle), और इस सच्चाई को उग्रता से नकारने वाले इस बात से अनभिज्ञ हैं कि वे कहाँ अपने पैर डाल रहे हैं। देश के अधिकाँश ज़िलों में हिन्दू आबादी सबसे कम आयुवर्ग में ९०% से नीचे के पायदान पर खिसक आई है, तथा इस वस्तुस्थिति को यूँ ही नकारा नहीं जा सकता।
केवल ऊपर दिए दो चित्रों की तुलना मात्र ही एक प्रतिरूप समक्ष उभारकर प्रस्तुत करती है। सबसे छोटी आयु के वर्ग में अब्राहमी बच्चों की संख्या सतत् बढ़ाव पर है, जैसा कि आप ऊपर के क्षेत्रों में देख सकते हैं (हल्क़ा हरा –> गहरा हरा –> लाल)। कोई ऐसा ज़िला ढूँढ़ना जिसमें यह ‘डिज़ाइन’ उल्टी दिशा में हो (हरे से सफ़ेद), एक असंभव सी चुनौती है। अगर आप सोच रहे हैं की यह संयोग मात्र है तो यह आपकी बहुत बड़ी भूल है|
आईये अब देखते हैं कि हमारा ‘समुदाय विशेष’- अर्थात मुस्लिम वर्ग, किस दिशा में गतिशील है:
इन चित्रों से तीन स्वरूप उभर कर सामने आ रहे हैं-
१) उत्तर प्रदेश-बिहार से होता हुआ तथा पश्चिम बंगाल-बांग्लादेश से जुड़ता हुआ ‘मुग़ल कॉरिडोर’ पूरी तरह हलचल में है। यहां ०-४ वर्ष के आयुवर्ग में निरंतर चढ़ाव दिख रहा है।
२) पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में नए जनसांख्यिकीय द्वन्द स्थापित हो रहे हैं।
३) ‘धार्मिक’ नक़्शे से असम तथा उत्तर पूर्व निरंतर खिसकते जा रहे हैं (यहाँ बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी जोड़ दें तो रही-सही क़सर भी निकल जाती है)।
HDI (हाई डेवलॅपमेंट इंडेक्स) के विषय में तर्क औंधे मुँह गिर पड़ते हैं हमारे ‘God’s own country’ राज्य केरल के सन्दर्भ में, जिसे कि कम्युनिज्म और उदारवाद की जन्नत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहाँ मुसलमान प्रजनन-दर में हिन्दुओं तथा ईसाईयों दोनों को पछाड़ चुके हैं। इन्टरनेट पर आपको पर्याप्त सँख्या में वीडियो मिल जाएँगे जिनमें आप मुल्लाओं को कॉन्डोम के प्रयोग के विरुद्ध मज़हबी कुतर्क देते पाएँगे, जिससे कि यह साफ़ पता चलता है कि इस धमधमाती मुस्लिम प्रजनन-दर के पीछे मज़हबी कारण छुपा है। परन्तु हमारे ‘लिबरल सम्प्रदाय’ के लोग शतुरमुर्ग बने रहने और दूसरों को भी बनाये रखने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं, वो भी तथ्यों को धता बताते हुए। केरल इसी कड़ी में नया जोड़ है जहाँ अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्नता होते हुए भी हम यह प्रवृत्ति देख रहे हैं।
इमेज को थोड़ा और ध्यान से देखने पर पाएँगे कि लाल रँग के क्षेत्रों में कई ऐसे हैं जहाँ ०-४ आयुसीमा में मुस्लिमों की सँख्या ४०% से अधिक है!
इससे बुरी स्थिति हमें शहरी क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होती है, जहाँ एक ओर अधिकतर हिन्दू “हम दो, हमारे दो” को पूर्णरूपेण आत्मसात किये बैठे हैं, तो वहीं दूसरी ओर मुसलमान गर्भ-निरोध से काटे हुए हैं।
गाँवों की हालत फिर भी अपेक्षाकृत बेहतर दिखती है, सिवाय पश्चिम बंगाल और असम के (इन दो राज्यों में हुए दंगों को रोकने में इसीलिए दीर्घ काल लग गया था)।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि आने वाले पन्द्रह वर्षों में इन क्षेत्रों में मुस्लिम-युवा बहुसंख्या में होंगे, विशेषकर कि शहरी क्षेत्रों में; तथा यह भी अपेक्षा मत करियेगा कि मुस्लिमों के अपने स्थानीय क्षेत्रों में सँख्या-समानता होने पर भी इस प्रवृत्ति में बदलाव आएगा।
क्योंकि जनसांख्यिकीय युद्ध पर बात चली है, तो बंगलादेश का विश्लेषण भी आवश्यक है, कारण कि वहाँ 50 साल में हिंदू संप्रदाय को पूर्ण रूप से नेस्तनाबूद किया जा चुका है| ज़रा एक नज़र वहाँ की हिन्दू जनसँख्या पर भी दौड़ा ही लेते हैं-
एक छोटी सी नज़र उपर के चित्र पर डालते ही आप समझ जाएँगे कि ‘हिन्दू-भविष्य’ बांग्लादेश में किस मुहाने पर खड़ा है। छोटे आयुवर्ग में पूरा बांग्लादेश अब हरा हो चुका है, अर्थात् सब जिलों में मुस्लिम आबादी 75 प्रतिशत पार कर चुकी है| तो अगली बार जब आपका बांग्लादेशी मित्र चहकते हुए यह बखान करे कि बांग्लादेश में हिन्दू भारत में ‘अल्पसंख्यकों’ के मुकाबले बड़ी मौज काट रहे हैं और प्रगतिपथ पर अग्रसर हैं, तब आपको पता होगा कि शेखचिल्ली को सच्चाई से कैसे नहला देना है!
नोट:
उपरोक्त सामग्री भारतीय सरकार के २०११ के धार्मिक जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है। अगर आप यह डाटा प्रयोग करने या देखने के इच्छुक हैं तो हमे फ़ेसबुक या ट्विटर पर समपर्क करें।